कुमाउनी रीति-रिवाज से हुआ सीएम के बड़े बेटे दिवाकर सिंह धामी का यज्ञोपवीत संस्कार, तीर्थपुरोहितों के पास वंशावली में दर्ज कराया नाम
देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने बड़े बेटे दिवाकर का यज्ञोपवीत संस्कार (ब्रतपन) हरिद्वार में कुमाउनी रीति-रिवाज से विधि विधान से कराया। मायापुर स्थित डीएम कैंप कार्यालय के पास गंगनहर किनारे संस्कार संपन्न हुआ। इस दौरान मुख्यमंत्री ने अपने तीर्थ पुरोहित के पास अपनी बही वंशावली में नाम दर्ज करवाया।
हिंदू धर्म में कुल 16 संस्कार हैं, जिनमें से यज्ञोपवीत संस्कार विशेष महत्व रखता है। इसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने ज्येष्ठ बेटे दिवाकर सिंह धामी का यज्ञोपवीत संस्कार कराया। सीएम के साथ उनकी पत्नी सहित परिवार के लोग मौजूद रहे। इस दौरान सीएम ने अपने तीर्थ पुरोहित के पास अपनी बही वंशावली में नाम लिखवाया।
हरिद्वार स्थित कुशा घाट पर यज्ञोपवीत संस्कार एक सूक्ष्म कार्यक्रम में पूर्ण विधि-विधान के साथ संपन्न हुआ। आयोजन में सीएम के साथ उनकी पत्नी सहित परिवार के लोग मौजूद रहे। इस दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की पत्नी गीता धामी कुमाऊंनी परिधान के साथ कुमाऊंनी पिछौड़ा और नथ पहना हुआ था। जिसमें वह बेहद सुंदर लग रही थीं।
यज्ञोपवीत संस्कार से पूर्व मुंडन करवाया जाता है। इस दिन स्नान करवाकर उसके सिर और शरीर पर चंदन केसर का लेप लगाया जाता है और जनेऊ पहनाकर ब्रह्मचारी बनाया जाता है। फिर हवन पूजन किया जाता है। भगवान गणेश आदि देवताओं का पूजन की बालक को अधोवस्त्र के साथ फूलों की माला पहनाकर बैठाया जाता है। इसके बाद दस बार गायत्री मंत्र पढ़कर देवताओं का आह्वान किया जाता है। इस दौरान बालक से शास्त्र शिक्षा और व्रतों के पालन का वचन लिया जाता है।
गुरु मंत्र सुनाकर कहता है कि आज से तू अब ब्राह्मण हुआ अर्थात ब्रह्म (सिर्फ ईश्वर को मानने वाला) को माने वाला हुआ। इसके बाद मृगचर्म ओढ़कर मुंज (मेखला) का कंदोरा बांधते हैं और एक दंड हाथ में दे देते हैं। वह बालक उपस्थित लोगों से भिक्षा मांगता है।
हरिद्वार पवित्र गंगा तट पर यज्ञोपवीत संस्कार संपन्न कराया। हिंदू धर्म में कुल 16 संस्कार हैं जिनमें से यज्ञोपवीत संस्कार विशेष महत्व रखता है। इसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं। यह एक धागा नहीं है बल्कि इसके साथ विशेष मान्यताएं भी जुड़ी हैं।
जनेऊ धारण करने के बाद व्यक्ति को अपने जीवन में नियमों का पालन करना पड़ता है। उसे अपनी दैनिक जीवन के कार्यों को भी जनेऊ को ध्यान में रखते हुए ही करना होता है। बालक की 8 वर्ष की आयु होने पर यज्ञोपवीत संस्कार कराया जा सकता है, लेकिन आज के समय में बदली जीवनशैली के कारण बचपन में यज्ञोपवीत संस्कार नहीं कराया जाता है। अब विवाह के दौरान यज्ञोपवीत संस्कार करने का चलन है। सनातन धर्म में आज भी बिना जनेऊ संस्कार के विवाह पूर्ण नहीं माना जाता है।