तलाक़ में अब इंतज़ार नहीं
तलाक एक कानूनी प्रक्रिया है जिससे दो व्यक्ति अपने वैवाहिक बंधन को समाप्त करते हैं। तलाक विवाहित जोड़े द्वारा शादी के दौरान समस्याओं के कारण लिया जाता है। इसमें अलग-अलग धर्मों व आवासीय कानूनों के अनुसार अलग-अलग प्रक्रियाएं होती हैं। तलाक वह निर्णय है जिससे दो पति-पत्नी का विवाह अंत हो जाता है। यह विवाह तोड़ने का कई कारण हो सकते हैं जैसे कि असंतुष्टि, झगड़े, विश्वासघात या किसी अन्य समस्या से जुड़े हो सकते हैं।
हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार, तलाक तीन प्रकार के होते हैं –
- तलाक-ए-आहसान,
- तलाक-ए-हसन और
- तलाक-ए-बिदात।
तलाक-ए-आहसान में पति को अपने विवाहिता को तलाक देने के लिए केवल एक बार इस्तेमाल करने की आवश्यकता होती है।
तलाक-ए-हसन में पति को अपनी विवाहिता को तलाक देने के लिए तीन बार तलाक कलम का इस्तेमाल करना पड़ता है।
तलाक-ए-बिदात में पति को अपनी विवाहिता को तलाक देने के लिए एक बार तलाक कलम का इस्तेमाल करना पड़ता है और तीन माह के भीतर इसे रद्द नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने तलाक को लेकर महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने कहा है, यदि पति-पत्नी के रिश्ते टूट चुके हों, उनमें सुलह जाइश ना वची हो तो परिवार अदालत भेजे विना ही तलाक को मंजूरी दी कती है। इसके लिए छह महीने का इंतजार जरूरी नहीं होगा। अदालत ने दे भी तय किए, जिनके आधार पर शादी में सुलह की संभावनाओं को परे जा सकेगा। अदालत दंपति के वीच वरावरी, गुजारा भत्ता, वच्चों की डी भी तय करेगी। यह मुद्दा संविधान पीठ के पास विचार के लिए भेजा जिसमें हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13वी के तहत आपसी सहमति क की प्रतीक्षा अवधि को माफ किए जाने का सवाल था । डिवीजन बेंच ने यह मामला 2016 में पांच जजों की संविधान पीठ को रेफर किया था।
पांच याचिकाओं की लंबी सुनवाई के वाद सितम्बर, 2022 में फैसला सुरक्षित रखते हुए संविधान पीठ ने कहा था, सामाजिक परिवर्तन में थोड़ा समय लगता है। कानून लाना आसान होता है मगर लोगों को राजी करना मुश्किल । दुनिया भर में सबसे कम 1.1त्न तलाक अपने यहां होते हैं। हालांकि इधर के वर्षों में शादी टूटने के मामले वढ़ते नजर आ रहे हैं। द इसके कानूनी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि दंपति कानूनन संबंध विच्छेद जाय अलगाव कुवूल कर लेते हैं। सामाजिक/ पारिवारिक स्थितियां जि से बदल रही हैं, लोगों की सोच में भी उसी तरह परिवर्तन नजर आ रहा है।
लहपूर्ण संबंध को ढोते रहने को राजी नहीं हैं। जिन मामलों में आपसी -इतनी बढ़ जाती है कि तलाक ही अंतिम परिणति नजर आती हैं, उनको सले के बाद संविधान की धारा 142 के तहत परिवार अदालतों के चक्कर काटने होंगे। अदालतों में तलाक के हजारों मामले सालों से पेंडिंग हैं। ये अलग हो कर नया जीवन शुरू करने की आस में वकीलों / अदालतों के र लगाते-लगाते थक जाते हैं । जव रिश्ते इतने विगड़ चुके हों और वे सहमति से अलग होने को राजी हों तो विलावजह मामले को लटकाने कोई मकसद नहीं होता ।
वास्तव में वुरी शादियों में फंसे लोग कई दफा क तौर पर बीमार हो जाते हैं। नतीजतन, मामला खुद को हानि पहुंचाने पहुंच जाता है। इसलिए जहां सुलह की गुंजाइश कतई नजर ना आ रही हें जबरन इस ऊहापोह में लटकाए रहने से राहत मिल सकती है। वास्तव यह फैसला स्वयं दंपति का होता है कि वे इसे निभाने को राजी हैं, या अलग को। इसका सम्मान होना चाहिए।