Tuesday, September 17, 2024
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दाल की खेती क्यों घटी?||Why did the cultivation of pulses decrease?

दाल की खेती के इलाके अगर सिकुड़ रहे हैं, तो यह सवाल बहुत गंभीर हो जाता है। यह और भी चिंताजनक कि जिन किसानों को पहले बाजार से दाल नहीं खरीदनी पड़ती थी, वे भी अब ऐसा करने पर मजबूर हैं। यह खबर चिंताजनक है कि बीते साल के मुकाबले भारत में धान और अरहर की खेती वाले इलाके इस साल घट गए हैं। कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक धान की खेती वाले इलाके 34 फीसदी और अरहर की खेती वाले इलाके 65 फीसदी कम हो गए हैं। खरीफ के सीजन में सोयाबीन की खेती वाले इलाके भी बीते साल के मुकाबले 34 फीसदी घट गए। यहां यह बात ध्यान में रखने की है कि दालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक तीनों है। यानी भारत इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं है। ऐसी हालत में दाल की खेती के इलाके अगर सिकुड़ रहे हैं, तो यह सवाल बहुत गंभीर हो जाता है। यह और भी चिंताजनक कि जिन किसानों को पहले बाजार से दाल नहीं खरीदनी पड़ती थी, वे भी अब ऐसा करने पर मजबूर हैं। यह हालत क्यों पैदा हुई?

वजह यह है कि किसानों को अब दाल की खेती करना फायदेमंद नहीं लगता। महाराष्ट्र जैसे दाल उत्पादक राज्य में अब रबी और खरीफ के सीजन के बीच के समय में उगाई जाने वाली मूंग और उड़द की जगह सोयाबीन ने ले ली है। जबकि अरहर की खेती वाले इलाकों क्षेत्र में दशकों से विस्तार नहीं हुआ है। जाहिर है, सोयाबीन का बेहतर भाव और तत्काल नकदी मिलने से किसानों में इसकी खेती के प्रति आकर्षण बढ़ा है। किसानों ने मीडियाकर्मियों को बताया है कि सोयाबीन की फसल सिर्फ 110 दिन में तैयार हो जाती है। उपज भी प्रति एकड़ 7-8 क्विंटल तक होती है। लेकिन अरहर की फसल 152 से 183 दिनों में तैयार होती है और उपज औसतन तीन क्विंटल प्रति एकड़ तक ही रहती है। लेकिन दालों का संबंध खाद्य सुरक्षा और लोगों को प्रोटीन उपलब्ध कराने से है। इसलिए सरकार को इस समस्या की तरफ ध्यान देना चाहिए। फिलहाल, सूचना यह है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में चना, अरहर, उड़द, मूंग और मसूर जैसे पांच दलहन शामिल हैं, लेकिन, अक्सर किसानों को यह मूल्य नहीं मिलता। इस ट्रेंड को तुरंत पलटे जाने की जरूरत है, ताकि देश की खाद्य सुरक्षा खतरे में ना पड़े।

दाल की खेती भारतीय कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। दाल में प्रोटीन, ऊर्जा, और पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। हालांकि, हालिया काल में दाल की उत्पादन में एक कमी देखी गई है। इसलिए, दाल की खेती में इस कमी के कारणों को समझना आवश्यक है।

कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

1. मौसम परिवर्तन

अनियमित मौसम परिवर्तन दाल की उत्पादन में समस्याओं का कारण बनता है। अधिक वर्षा, धूप की कमी, या बाढ़ की स्थिति में दाल की उगाई प्रभावित हो सकती है। इसके परिणामस्वरूप, उत्पादकता में गिरावट हो सकती है और फसलों की बीमारियाँ भी बढ़ सकती हैं।

2. खरपतवार की समस्याएं

दाल की खेती में खरपतवारों की समस्याएं भी एक मुख्य कारण हो सकती हैं। कीटों, कीटाणुओं, रोगों, और विषाणुओं के प्रकोप ने दाल की उत्पादन को प्रभावित किया है। नकारात्मक पर्यावरणीय परिवर्तन और केमिकल कीटनाशकों के अधिक उपयोग के कारण खरपतवारों की संख्या में वृद्धि हुई है। यह फसलों की स्वास्थ्य और प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है।

3. बिजाई तंत्र की अव्यवस्था

दाल की उत्पादन में अव्यवस्थित बिजाई तंत्र भी मुख्य कारण है। किसानों को सही बीज उपलब्ध न होने, उचित तरीके से उपजाऊ उत्पादन तकनीकों के अभाव, और सम्पूर्ण उत्पादकता चक्र के लिए अधिक व्यापक गठबंधन की आवश्यकता होती है।

4. बदलती किसानों की प्राथमिकताएं

कृषि में बदलती किसानों की प्राथमिकताओं ने दाल की खेती को प्रभावित किया है। अधिकांश किसान अब मुख्य ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जैसे अन्य फसलों में, जो दाल की खेती को कम कर रहा है। इसके परिणामस्वरूप, दाल की उत्पादन में गिरावट आ रही है।

इन सभी कारणों के कारण, दाल की खेती में एक घटाव देखा गया है। यह मानव आहार के लिए महत्वपूर्ण फसल है और इसकी कमी खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है। कृषि वैज्ञानिकों और किसानों को सहयोग करके दाल की खेती में सुधार करना और उत्पादकता को बढ़ाना आवश्यक है।

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