उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे आई फ्लू के केस, आई स्पेशलिस्ट डॉ मोहित कुमार ने बताया कैसे करे अपनी आंखों का बचाव
श्रीनगर गढ़वाल:- उत्तराखंड में कंजेक्टिवाइटिस यानि आई फ्लू के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल दून मेडिकल कॉलेज के साथ ही गढ़वाल मंडल के पौड़ी जनपद के श्रीनगर गढ़वाल स्थित उपजिला चिकित्सालय में ऐसे मरीजों का तांता लगा हुआ है। आई फ्लू के मरीजों की संख्या में इजाफा देखते हुए अस्पताल प्रबंधन भी लगातार लोगों से आइसोलेट होने को कह रहा है।
आई फ्लू बीमारी को मेडिकल की भाषा में एडिनोवायरस बोला जाता है जो एक तरह का वायरस होता है। यह एक दूसरे के संपर्क में आने पर फैलता है। डॉ मोहित कुमार का कहना है कि जिसको भी यह बीमारी होती है हम उन्हें जनरल आइसोलेट होने के लिए कहते हैं। जो भी वह चीज इस्तेमाल करते हैं उनसे कहा जाता है कि वह चीजें किसी दूसरे को इस्तेमाल ना करने दें क्योंकि यह एक दूसरे से संपर्क में आने से फैलती हैं और बहुत तेजी से फैलती हैं। जिससे और भी लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं।
खुद से ही न ले कोई दवा
यदि आपमें आई फ्लू के लक्षण दिखे रहे हैं तो इस बारे में किसी विशेषज्ञ से संपर्क करके इलाज कराएं। खुद से ही या ओवर द काउंटर दवाओं या आई ड्रॉप्स का इस्तेमाल न करें, इससे जोखिम बढ़ सकता है। आंखों में होने वाली कई अन्य समस्याओं में भी आई फ्लू की तरह के ही लक्षण हो सकते हैं, इसलिए लक्षणों के सही कारण को जानना और उसका इलाज कराना आवश्यक हो जाता है।
लाल या गुलाबी आंखें
कंजेक्टिवाइटिस के सबसे आम और पहचानने योग्य लक्षणों में से एक आंखों का लाल होना है। ब्लड वेसल्स के फैलाव के कारण कंजक्टिवा में सूजन हो जाती है, जिसकी वजह से आंखें गुलाबी या लाल दिखाई देने लगती है। यह रेडनेस एक या दोनों आंखों को प्रभावित कर सकती हैं। अगर आपकी आंख लगातार लाल या गुलाबी रंग की नजर आ रही है, तो यह आई फ्लू का लक्षण हो सकता है।
अत्यधिक आंसू आना
अगर आपको अचानक आंखों से आंसू या पानी आने की समस्या हो रही है, तो सतर्क हो जाएं। सूजन या जलन की वजह से अक्सर आई फ्लू में आंखों से पानी आने लगता है। यूं तो स्वस्थ आंखों के लिए आंसू जरूरी है, लेकिन अगर आपको रेडनेस और असुविधा के साथ आंखों से लगातार पानी आ रहा है, तो यह कंजेक्टिवाइटिस हो सकता है।
आंखों से डिस्चार्ज निकलना
कंजेक्टिवाइटिस की वजह से अक्सर आंखों के प्रभावित हिस्से से डिस्चार्ज होने लगता है। हालांकि इसकी कंसिस्टेंसी और रंग अलग हो सकते हैं। आंखों से निकलने वाला यह डिस्चार्ज पतला, पानी जैसा तरल भी हो सकता है या फिर पीले या हरे रंग का गाढ़ा पदार्थ भी हो सकता है। इसकी वजह से पलकों के आसपास पपड़ी भी जम सकती है। खासकर सोने के बाद। अगर आपको भी आंखों में इस तरह का असामान्य डिस्चार्ज देखने को मिल रहा है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
खुजली और जलन
आंखों में तेज खुजली और जलन भी कंजेक्टिवाइटिस के सामान्य लक्षण हैं। दरअसल, कंजक्टिवा में सूजन की वजह से यह समस्या हो सकती है। अगर आपको लगातार आंखों को रगड़ने या मलने की तीव्र इच्छा हो रही है, तो यह कंजेक्टिवाइटिस हो सकता है। हालांकि, ध्यान रखें कि इस दौरान आंखों को रगड़ने से बचें, क्योंकि इससे संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ सकता है।
रोशनी के प्रति संवेदनशीलता (फोटोफोबिया)
अगर आपको अचानक ही प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता का अनुभव होने लगा है, तो हो सकता है कि आप कंजेक्टिवाइटिस से पीड़ित हैं। आई फ्लू के दौरान तेज रोशनी के संपर्क में आने से अक्सर आंखों में दर्द होने लगता है। इसे फोटोफोबिया के नाम से भी जाना जाता है। अगर आप प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता के साथ ही आंखों से जुड़ी अन्य लक्षणों को खुद में देख रहे हैं, तो तुरंत किसी नेत्र विशेषज्ञ से संपर्क करें।
धुंधली दृष्टि
कुछ लोगों को कंजेक्टिवाइटिस की वजह से अस्थाई रूप से ब्लर विजन की समस्या भी हो सकती है। अगर आपको अचानक ही देखने में परेशानी होने लगी है और आंखों में अन्य बदलाव नजर आ रहे हैं, तो हो सकता है कि आप कंजेक्टिवाइटिस का शिकार हो चुके हैं।
बचाव के लिए बरतें ये सावधानियां
आई फ्लू संक्रमण से बचाव के लिए सफाई पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है। हाथों को लगातार धोने रहने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। वहीं, चश्मे, कॉन्टेक्ट लेंस और आंखों के संपर्क में आने वाली किसी भी वस्तु की भी नियमित सफाई भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। बच्चे अक्सर अपनी आंखों को रगड़ते या छूते रहते हैं, जिस कारण वे इस संक्रमण का शिकार हो सकते हैं। ऐसे में बच्चों को अपनी आंखों को छूने से बचने की सलाह दें और वायरस के संपर्क में आने और फैलाव से बचने के लिए छींकते या खांसते समय टिश्यू पेपर का इस्तेमाल करना सिखाएं। टिश्यू पेपर को एक बार इस्तेमाल के बाद डस्टबिन में फेंक देना चाहिए.सभी को संक्रमित या संक्रमण के लक्षण वालों से दूर रहने की सलाह दें। अगर बच्चा संक्रमित हो चुका है तो उसे भी सबसे दूरी बना कर रखने के लिए कहें और उसे काला चश्मा पहनाएं, जिससे संक्रमण का फैलाव न हो और तुरंत ही अपने डॉक्टर से संपर्क कर उनसे सलाह लें।