प्रदेश में पहली बार गिद्धों की चार प्रजाति पर सेटेलाइट टैग लगाकर किया जाएगा अध्ययन, विलुप्त होने के कगार पर हैं पक्षी
देहरादून: उत्तराखंड में पहली बार गिद्धों की चार प्रजाति के दो-दो पक्षियों पर सेटेलाइट टैग लगाकर अध्ययन किया जाएगा। शिकारी श्रेणी का यह पक्षी विलुप्त होने के कगार पर हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने इन्हें विलुप्तप्राय पक्षी की श्रेणी में रखा है। राजाजी और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के तहत किए जाने वाले अध्ययन के लिए पक्षियों पर टैग लगाने के लिए वन विभाग ने शासन से अनुमति मांगी है। पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गिद्धों की संख्या उत्तराखंड में कितनी है, इसका ठीक-ठीक आंकड़ा किसी के पास नहीं है। वन विभाग की सांख्यिकी बुक में गिद्धों की संख्या का वर्ष 2005 का डाटा दर्शाया गया है।
इसके अनुसार संरक्षित क्षेत्रों में गिद्धों की संख्या 1272 और संरक्षित क्षेत्रों के बाहर 3794 कुल 5066 है। इसके बाद से यह डाटा अपडेट नहीं किया गया है। अब वन विभाग ने एक बार फिर से गिद्धों की दुनिया में झांकने का बीड़ा उठाया है। इसके लिए डब्ल्यूडब्लयूएफ इंडिया के सहयोग से गिद्धों की चार प्रजातियों के दो-दो पक्षियों पर सेटेलाइट टैग लगाकर अध्ययन किया जाएगा। यह अध्ययन गढ़वाल में राजाजी टाइगर रिजर्व और कुमाऊं में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के तहत किया जाएगा। इस अध्ययन में गिद्धों के रहवास, प्रवास, उनके रास्ते, रहन-सहन आदि के बारे में जानकारियां जुटाई जाएंगी। इस संबंध में मुुख्य वन्यजीव प्रतिपालक की ओर से प्रमुख सचिव वन एवं पर्यावरण को पत्र लिखकर अध्ययन की अनुमति मांगी गई है।
गिद्ध की इन प्रजातियों पर होगा अध्ययन
- लाल सिर गिद्ध (रेड हेडेड वल्चर)
- सफेद पूंछ वाला गिद्ध (व्हाइट रम्प्ड वल्चर)
- सफेद गिद्ध (इजिप्सिन वल्चर)
- प्लास फिश
राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक और इस प्रोजेक्ट के नोडल अधिकारी डॉ. साकेत बडोला ने बताया कि यह चारों शिकारी प्रजाति के पक्षी बेहद दुर्लभ श्रेणी के हैं। लेकिन अच्छी बात यह है कि समय-समय पर उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं के विभिन्न क्षेत्रों में इनकी उपस्थिति पाई गई है। इनके संरक्षण को लेकर वन विभाग संजीदा है। इसी के तहत इन पर वृहद अध्ययन किया जाएगा। यह प्रोजेक्ट अगले तीन साल तक चलेगा।