ट्विटर को थ्रेड्स खा जाएगा?
श्रुति व्यास
थ्रेड्स(threads) – ये नाम है हमारी सोच को दुनिया से साझा करने के सबसे नए ज़रिये का। यह नया एप स्टाइलिश है, और अपने जैसे अन्य एप्स से जऱा हटकर है। यह एप फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग का है। ऐसा कहा जा रहा है कि यह एलन मस्क के ट्विटर को खत्म कर देगा। साथ ही यह हमारे दिमाग को खत्म करने वाला एप भी है। लेकिन इसकी चर्चा बाद में।
जुकरबर्ग की कंपनी मेटा ने दस साल से भी अधिक समय पहले लोकप्रिय फोटो शेयरिंग एप इंस्टाग्राम पेश किया था। थ्रेड्स इसी की अगली कड़ी है। इन दिनों फेसबुक के मुकाबले इंस्टाग्राम ज्यादा फैशन में है। जैसा कि आज के नौजवान कहते हैं, ‘‘फेसबुक हमारे पिताओं और दादाओं के लिए है और इंस्टाग्राम हमारे लिए”। बात एकदम सही है। अपने पहले दिन में ही थ्रेडस के यूजर्स की संख्या करोड़ों में जा पहुंची। इसे अपनाने वाले लोगों और कंपनियां में नेटफ्लिक्स, गोर्डन रेमसे, शकीरा और एचबीओ शामिल हैं। अभी-अभी खबर मिली है कि ओपरा विनफ्ऱे और दलाई लामा से भी इससे जुडऩे का आग्रह किया गया है। हैरानी इस बात की है कि ये पंक्तियां लिखे जाने तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इससे नहीं जुड़े हैं। आश्चर्यजनक है कि ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह इससे जुड़ चुके हैं।
जहां तक मेरा सवाल है, इसमें शामिल होने वालों में मेरा नंबर 58,50,255वां है। मैं इस सोशल मीडिया एप से जुडऩे को मजबूर इसलिए हुई क्योंकि उसे लेकर हो रहे शोर-शराबे को नजरअंदाज करना असंभव था। साथ ही, उसके बारे में लिखने के लिए उसे अनुभव करना जरूरी था। और फिर ऐसी कोई भी चीज जो एलन मस्क के ट्विटर के खात्मे का दावा करे का अनुभव किया ही जाना चाहिए! मार्क जुकरबर्ग का थ्रेडस अपने सुनहरे दौर के पुराने ट्विटर जैसा है। यह साफ़-सुथरा और संयत है और (अभी तक) केवल चर्चा और पोस्टों तक सीमित है। जो कूल है उसे अपनाना तो ज़रूरी है ही क्योंकि उसे ही जनता पसंद करती है।
नीले रंग की जगह काले ने ले ली है और चिडिय़ा जी जगह ‘एट’ के निशान 6ञ्च8 ने। बाकी सब ट्विटर जैसा ही है। थ्रेडस में भी शब्दों में लिखे संदेश एक फीड में पोस्ट किए जाते हैं, जिसे स्क्राल किया जा सकता है और इस फीड में यूजर जिन्हें फालो करता है और जो यूजर को फालो करते हैं, पोस्टों का जवाब दे सकते हैं। एप पर वीडियो और फोटो भी पोस्ट किए जा सकते हैं। आप जिन्हें फालो कर रहे हैं उनकी लिस्ट अभी थ्रेड्स में नहीं दिखती और ना ही इसके ज़रिये वे आपको डीएम (डायरेक्ट मैसेज) भेज सकते हैं। लेकिन थ्रेडस पर पोस्ट 500 अक्षरों तक के हो सकते हैं। यह संख्या ट्विटर के यूजर्स के लिए 280 तक सीमित है। पांच मिनट तक के वीडियो भी पोस्ट किए जा सकते हैं और किसी भी पोस्ट को लिंक के ज़रिये से अन्य प्लेटफार्मों पर शेयर किया जा सकता है।
चूंकि मेटा पहले से ही आनलाइन दुनिया पर छाया हुआ है, इसलिए थ्रेडस पर साइनअप करना बहुत आसान है। इसके लिए केवल आपका इंस्टाग्राम एकाउंट होना चाहिए और आप उसके जरिए ही थ्रेड पर लाग इन कर सकते हैं। आपका इंस्टाग्राम यूजर नेम ही चल जाएगा, आप जिनको फालो करते हैं उनकी सूची, आपका जीवन परिचय और आपकी फोटो भी आ जाएगी। इसलिए आपको सब कुछ जीरो से शुरू नहीं करना होगा बल्कि आप सीधे थ्रेड का उपयोग कर सकेंगे। जुकरबर्ग ने फेसबुक वाले अंकलों और आंटियों को यह सहूलियत नहीं दी है इसलिए आपको थ्रेड तक पहुंचने के लिए पहले इंस्टाग्राम से जुडऩा होगा।
कई टेक्नोलॉजी कंपनियों ने हाल के महीनों में ट्विटर में उथल-पुथल का फायदा उठाने की कोशिश की है। और मेटा भी कई अन्य कंपनियों – ब्लूस्काई, मेस्टडोन, स्पिल, सबस्टेक नोट्स और कई और – की तरह किसी दौर के सबके चहेते लेकिन आज गोते खा रहे ट्विटर से आगे निकलने की कोशिश कर रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि एलन मस्क के कब्जे में जाने के बाद से ट्विटर बर्बाद हो गया है। मस्क ने इसके अल्गोरिथम और अन्य फीचर्स के साथ छेड़छाड़ करके इसके यूजर्स को मिलने वाले अनुभव में बहुत बदलाव ला दिया हो। यह गैर-बराबरी को बढ़ावा देना वाला प्लेटफार्म बन गया है। और हाल में यूजर्स द्वारा पढ़े जा सकने वाले ट्वीटस की संख्या को अस्थायी रूप से सीमित कर दिया था, जिस पर बहुत गुस्सा है।
ट्विटर वाकई तबाह हो गया है!
थ्रेडस को मेटा के अकूत आर्थिक संसाधनों और इंस्टाग्राम यूजर्स की विशाल संख्या – जो दुनिया भर में 200 करोड़ से ज्यादा हैं – का फायदा मिलेगा। और प्रतिस्पर्धी के रूप में जुकरबर्ग को हल्के में नहीं लिया जा सकता। किस्मत भी उनके साथ है और यही कारण है कि वे केवल दूसरों की नक़ल कर अपना एक बड़ा व्यापारिक साम्राज्य खड़ा कर पाए हैं। थ्रेड्स एकदम ट्विटर जैसा है। इसमें कोई नयापन या नया फीचर नहीं है। जैसे रील्स, टिक-टाक से मिलता-जुलता था और फेसबुक मैसेंजर, स्नेपचैट जैसा था। लेकिन थ्रेडस इसलिए सफल हो सकता है क्योंकि लोग एलेन मस्क और उनके दक्षिणपंथ और दक्षिणपंथी नेताओं की तरफ झुकाव और गंवार जोकर जैसे रंग-ढंग से तंग आ चुके हैं।
जहां तक हमारा सवाल है, स्क्रीन को स्क्रॉल करते-करते हमारे दिमाग थक जाते हैं और हमारी उंगलियां सुन्न हो जाती हैं। या शायद हम रील्स और पोस्ट बनाते-बनाते तंग आ चुके हैं जो वास्तविक जीवन का एक मुखौटा भर हैं। या जब तक हमें यह एहसास नहीं हो जाता कि हम 21वी सदी के अनाड़ी लंगूर बन गए हैं। जब तक ऐसा नहीं होता, हम एक-दूसरे से थ्रेडस, इंटाग्राम, फेसबुक, ट्विटर और व्हाटसएप पर मिलेंगे, असहमत होंगे और ट्रोल करेंगे।